गुणों से है मालामाल रसोई में मौजूद ये छाल
सुमन कुमार
गरम मसाले के एक हिस्से के रूप में हमारी-आपकी सबकी रसोई में एक पेड़ की छाल का इस्तेमाल खूब किया जाता है। जी हां सही समझा आपने, मैं दालचीनी की ही बात कर रहा हूं। सदियों से ये मसाला हमारी रसोई में इस्तेमाल हो रहा है मगर आज मैं आप सभी को इसके औषधीय गुणों के बारे में बताने जा रहा हूं जिन्हें वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित किया गया है और इस शोध के नतीजे प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं।
खास बातें
इस शोध में 58 ऐसे लोगों जो किसी न किसी मेटाबोलिक सिंड्रोम से परेशान थे उन्हें दालचीनी को कैप्सूल के रूप में देकर उसका असर परखा गया। इन लोगों को अलग-अलग तरह के मेटाबोलिक समस्याएं थीं मसलन पेट पर चर्बी, ट्राइग्लिसराइड का उच्च स्तर, लो एचडीएल, हाई ब्लड शुगर और हाई बीपी आदि। इनके साथ ऐसे ही लक्षण वाले 58 अन्य लोगों को जिन्हें कंट्रोल ग्रुप कहा गया उन्हें आटे की सामान्य गोली दी गई। 16 सप्ताह तक दोनों समूहों पर डबल ब्लाइंड टेस्ट किया गया। डबल ब्लाइंड टेस्ट का अर्थ यह है कि दोनों समूहों में किसी को नहीं पता था कि किसे क्या दवा दी जा रही है और साथ ही जो लोग दवा देने के लिए नियुक्त थे उन्हें भी इसके बारे में अंधेरे में रखा गया था। उन्हें सिर्फ इतना पता था कि एक समूह को एक दवा देनी है और दूसरे समूह को दूसरी। उन कैप्सूल में क्या है ये उन्हें भी नहीं पता था।
कैसे किया गया रिसर्च
दालचीनी का पाउडर बनाकर उसे कैप्सूल फॉम में बदला गया। प्रतिदिन 3 ग्राम दालचीनी के छह कैप्सूल बनाए गए यानी हर कैप्सूल में .75 ग्राम दालचीनी रखी गई और हर व्यक्ति को दिन में हर खाने के बाद दो कैप्सूल दिया गया। यानी सुबह नाश्ते के बाद, दिन के खाने के बाद और रात के खाने के बाद। इसके साथ ही उन्हें डायटिंग और जीवनशैली से संबंधित सलाह दी गई जिनका पालन करना था।
दूसरे समूह को भी इसी प्रकार छह कैप्सूल दिए गए मगर उनमें दालचीनी के बदले 2.5 ग्राम गेहूं का आटा भरा गया। उन्हें भी आहार और जीवनशैली संबंधी वही सलाहें दी गईं।
परिणाम
इस ट्रायल के शानदार परिणाम सामने आए। सबसे पहले तो वजन में अच्छी कमी देखने में आई। जिस समूह को दालचीनी दी गई उस समूह में औसतन वजन में 3.8 फीसदी की कमी हुई। इसके अलावा मोटापे में भी कमी दर्ज की गई। बॉडी मास इंडेक्स में 3.9 फीसदी जबकि शरीर की चर्बी में 4.3 फीसदी की औसत कमी पाई गई। कमर के घेरे में कमी का औसत प्रतिशत तो 5.3 फीसदी रहा।
बीपी
दालचीनी के 16 हफ्ते तक नियमित सेवन से रक्तचाप में जोरदार कमी दर्ज की गई। इस समूह के लोगों का औसत रक्तचाप 135.8/88 था जो घटकर 122.2/79.9 पर आ गया।
शुगर
भूखे पेट किए गए शुगर जांच में औसतन 7.1 फीसदी की कमी आई। समूह का औसत फास्टिंग शुगर 102.7 था जो कि घटकर 95 पर आ गया। इसी प्रकार पीपी शुगर में 6.8 फीसदी की कमी हुई जो कि औसतन 134.6 से घटकर 124.9 पर पहुंच गया। ग्लाइकोसाइलेटेड हेमोग्लोबिन (एचबीए1सी) 6.1 से घटकर 5.7 पर पहुंच गया।
लिपिड्स
दालचीनी का सबसे अधिक असर इसी सेक्शन में नजर आया। टोटल कोलेस्ट्रोल का स्तर 20.9 फीसदी कम हो गया। समूह का औसत टोटल कोलेस्ट्रोल 201.9 से घटकर 181.3 पहुंच गया।
ट्राइग्लिसराइड्स के स्तर में 16.1 फीसदी की कमी हुई और ये 174.9 फीसदी से घटकर 146.7 पर पहुंचा।
बैड कोलेस्ट्रोल यानी एलडीएल के स्तर में 12.9 फीसदी की कमी हुई जबकि गुड कोलेस्ट्रोल यानी एचडीएल का स्तर 6.2 फीसदी बढ़ गया।
दूसरे समूह से तुलना
ये पाया गया कि दालचीनी के कैप्सूल वाले समूह में जहां मेटाबोलिक सिंड्रोम का असर 34.5 फीसदी तक कम हो गया वहीं आटे के कैप्सूल वाले समूह में यह कमी 5.2 फीसदी दर्ज की गई। यानी दालचीनी के फायदे वैज्ञानिक रूप से स्थापित हो गए।
किसने किया है ये शोध
दिल्ली स्थित नेशनल डायबिटीज, ओबेसिटी एंड कोलेस्ट्रोल फाउंडेशन ने दिल्ली विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट ऑफ होम इकोनॉमिक्स और फोर्टिस-सी डॉक अस्पताल के साथ मिलकर दालचीनी के उन भारतीयों के ऊपर असर का अध्ययन किया जिनमें मेटाबोलिक (चयापचय संबंधी) समस्याएं होने की प्रवृत्ति ज्यादा थी और जो इन समस्याओं के कारण कम उम्र में ही मधुमेह की ओर प्रवृत्त हो सकते थे।
किस मेडिकल जर्नल ने शोध पत्र छापा
अमेरिका के प्रसिद्ध मेडिकल जर्नल लिपिड्स इन हेल्थ एंड डिजीज ने दालचीनी के गुणों से संबंधित इस शोध पत्र को प्रकाशित किया है। ये जर्नल केवल अमेरिका में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में मेटाबोलिक और लिपिड संबंधित बीमारियों के क्षेत्र में काम करने वाले वैज्ञानिकों, स्वास्थ्य पेशेवरों और फीजिशियनों को लक्षित करने के लिए जाना जाता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
एन-डॉक के निदेशक और फोर्टिस सी डॉक अस्पताल के चेयरमैन डॉक्टर अनूप मिश्रा सेहतराग से बातचीत में कहते हैं कि पारंपरिक भारतीय जड़ी-बूटियों और मसालों के बहुप्रचारित “गुणों” को सख्त वैज्ञानिक कसौटियों पर कसने की जरूरत है। ऐसे में दालचीनी के बारे में हमारे वैज्ञानिक अध्ययन को देखते हुए मैं वैज्ञानिक रूप से यह सलाह दे सकता हूं कि सभी वयस्क भारतीयों को अपने खाने में दालचीनी को जरूर शामिल करना चाहिए और खासकर उन्हें जो विभिन्न मेटाबोलिक समस्याओं या मधुमेह के जोखिम क्षेत्र में हैं।
इंस्टीट्यूट ऑफ होम इकोनॉमिक्स की एसोसिएट प्रोफेसर डॉक्टर सीमा पुरी का कहना है कि इस शोध के नतीजे बताते हैं कि सामान्य भोजन भी स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक हो सकता है। दालचीनी सर्वसुलभ मसाला है और इसलिए आसानी से हमारे नियमित भोजन में शामिल हो सकता है।
सावधानी: जिन लोगों को मसालों से एसिडिटी या गैस की गंभीर समस्या है उन्हें इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। यह ध्यान रखें कि ज्यादा पकाने पर दालचीनी के गुण समाप्त हो जाते हैं इसलिए दालचीनी का पाउडर बनाकर खाने में ऊपर से डाल लें या चाय में डाल कर सेवन करें तो ये फायदे मंद होगा। पाउडर बनाने में मिक्सी का इस्तेमाल न करें क्योंकि मिक्सी का मोटर तेज गर्मी पैदा करता है जो दालचीनी के गुणों को कम कर देता है इसलिए इसे पारंपरिक विधि से ही पाउडर में बदलें। प्रतिदिन इसका 2 से तीन ग्राम पाउडर ही इस्तेमाल करें, ज्यादा इस्तेमाल नुकसान देह भी हो सकता है यानी एक बार में एक ग्राम से कम पाउडर का ही सेवन करें।
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